यूथ इण्डिया फर्रुखाबाद। श्री राम जन्मभूमि पर भव्य मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन और शिलान्यास के बाद भी कुछ वितन्डा वादी प्रतिदिन कुछ न कुछ एक नया राग अलापने लगते हैं। यह वही लोग हैं जो राम को काल्पनिक मानते थे और अयोध्या में श्री राम प्रकट हुए इस अकाट्य सत्य को नकारते हुए मन्दिर निर्माण का प्रबल विरोध करते थे। माननीय उच्चतम न्यायालय में राम मंदिर प्रकरण को हर क्षण उलझाने के प्रयास में श्रीमान कपिल सिब्बल जैसे महानुभाव और उनके दल के विचार सदैव से ही राम विरोधी रहे हैं। इसमें आश्चर्य की बात नहीं है क्योंकि सन्त तुलसी दास ने लिखा है कि ष्अति खलु जे विषयी बग, कागा, यहि सर निकट न जाहिं अभागाष् अब यही धर्म निरपेक्षता की दुहाई देकर प्रधानमंत्री द्वारा किये गये इस पवित्र एवं ऐतिहासिक कार्य का विरोध करने से बाज नहीं आ रहे हैं किन्तु हमारे देश ने ऐसे कपट और दम्भ पूर्ण विचारों को कभी मान्यता नहीं दी क्योंकि हरि निन्दक के निकट जाना भी कष्ट कारक होता है।
हरि हर निन्दा सुनहि जे काना, तिनहि पाप गोघात समाना
यह ध्रुव सत्य है कि अयोध्या के दशरथ नन्दन राम हमारे आराध्य ही नहीं हमारे जीवन के आधार है उन्होंने स्वयं कंटको में पड़ कर औरों के कंटक दूर किये। लोक कल्याण में रत विश्वामित्र के मन में जब यह भाव आया कि गाधि तनय मन चिंता व्यापी, हरि बिनु मरहि न निश्चर पापी तब इसी समस्या के समाधान के लिए वह अयोध्या की चैखट पर यह कहते हुए खड़े हो गये कि -
असुर समूह सतावै मोही, मै जाचन आयो नृप तोही।।
वह राम को लेने अयोध्या इसलिए गये कि उनके निष्कपट हृदय में प्रभु राम निवास कर रहे थे और उन्हें विश्वास था कि निशाचरो के नाश करने में श्री राम ही समर्थ है। ऐसे प्रभु राम शीघ्र ही अपने भव्य सिंहासन पर विराजमान हो।
- ब्रज किशोर मिश्र एडवोकेट
प्रदेश अध्यक्ष
लोकतंत्र सेनानी समिति, उ॰प्र॰
जिनके कपट दम्भ नहिं माया, तिनके हृदय बसहु रघुराया